भवाली/आस्था–1984 में हनुमान के दर्शन मनुष्य के रूप में, वास्तव में हनुमान अमर है, बाबा नीम करोली के रूप में दर्शन देकर उन्होंने अनेकों को कृतार्थ किया हैं…

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घटना 1984 की है आर एस यादव वीडियो दिल्ली के चचेरे भाई और अमर सिंह यादव जी अपने गुरु के साथ वृंदावन के आश्रम में रहकर साधना किया करते थे। आप कहते हैं एक दिन उनके गुरुदेव श्री स्वामी गिरधारी लाल भक्तमाल अपनी शिष्य मंडली को लेकर परिक्रमा मार्ग पर स्थित गोरेगांव के मंदिर गए थे। वहां सत्संग हो रहा था हनुमान जी के प्रसंग में एकाएक मेरे मन में विचार आया कि सभी इन्हें अमर कहते हैं पर कोई भी यह नहीं कहता कि उसने इन्हें देखा है।

मेरे व्यक्ति का ना दिखाई देना स्वाभाविक है पर अमर किसी को ना दिखाई दे आश्चर्य की बात है मैंने अपना यह विचार संत समाज के विचार अर्थ प्रस्तुत किया। मेरी शंका का जो भी समाधान किया गया मुझे संतोष नहीं हुआ मेरे गुरुदेव ने गुरु भाइयों को अपने पास में नीम करोली बाबा के आश्रम में जाकर हनुमान विग्रह के दर्शन करने का आदेश दिया।

उनके लौट आने पर आपने मुझे भी ऐसी आज्ञा दी आश्रम के प्रवेश द्वार के सामने ही यह सुंदर मंदिर मुझे दिखाई दिया। उसमें हनुमान जी की मूर्ति नहीं दिखाई दी। एक मोटा आदमी धोती पहने और कंबल ओढ़ उसे कक्षा के मध्य में बाहर की ओर मुंह की आराम से अकेला बैठा था।

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मैंने अनुमान लगाया कि आप ही इस मंदिर और आश्रम के व्यवस्थापक होंगे। मूर्ति की प्रतीक्षा होगी उसके आने पर ही स्थापना होगी गोरेगांव से वापसी में मैंने जो कुछ देखा था उसका वर्णन गुरु महाराज से किया। मेरे गुरु भाइयों ने आश्चर्य व्यक्ति किया कि मुझे उसे मंदिर में हनुमान जी की विशाल मूर्ति नहीं दिखाई दी पर गुरुदेव बोले या हनुमान जी की कृपा है उनके मनुष्य रूप में तुम्हें दर्शन हुए।

इस घटना के कुछ वर्ष बाद में अपने भाई आर एस यादव जी के साथ घर गया था। सहयोग बस वहां मुझे इस मोटे आदमी का छायाचित्र दिखाई दिया। जिसे मैंने बाबा नीम करोली आश्रम के मंदिर में देखा था वही आकृति थी और वही वेशभूषा।

मैं इस छायाचित्र की ओर इंगित करते हुए अपने भाई से कहा कि मैं इन्हें देखा है। उन्होंने पूछा कब और कहां?

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मैं सन 1984 की उपयुक्त घटना का सविस्तार वर्णन किया हुए मेरी बात सुनकर प्रसन्न हुए और बोले यह चित्र बाबा नीम करौली का है। जिन्हें लोग हनुमान का अवतार मानते हैं। इन्होंने अपना शरीर सन 1973 में शांत कर दिया था यह उनकी कृपा है।

इन्होंने आपको प्रत्यक्ष दर्शन दिया उसे मंदिर में हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति की स्थापना सन 1970 के आसपास हुई थी जो आपको दिखाई नहीं दी। इस संबंध में उन्होंने कहा इस प्रकार की घटनाएं पूर्व में भी हुई है। उन्होंने अपने मित्र एवं बाबा नीम करोली के भक्त श्री बृहस्पति देव त्रिगुणा वैद्य जी के दो अनुभव प्रस्तुत किया।

24 सितंबर 1973 के दिन वैद्य जी जौनपुर में स्थित बाबा के दिल्ली आश्रम में उनकी 13वीं का प्रसाद पाने गए हुए थे। वहां जब उन्होंने हनुमान विग्रह के आगे नमन कर अपना सिर उठाया तो उन्हें हनुमान मूर्ति के स्थान पर बाबा खड़े दिखाई दिए हुए इस दृश्य से बहुत देर तक स्तंभित रह गए अंत में जब उन्होंने पूनम प्रणाम किया तो उन्हें पर्वत हनुमान बिगड़ के दर्शन हुए।

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उनका दूसरा अनुभव 1976 के बाद का था जब कैंची में एक विशाल संगमरमर के मंदिर में पादासन में विराजमान बाबा नीम करोली के विग्रह की स्थापना हो रही थी। वैदेही सन 1980 में दिल्ली से कैंची दर्शन को गए थे। वह जितने समय वहां रहे उन्हें उसे मंदिर में बाबा के नहीं एक विशाल हनुमान विग्रह के दर्शन होते रहे।

उनकी जानकारी में भी यह नहीं था कि वह बाबा का मंदिर है दिल्ली वापस आने पर उन्होंने संगमरमर के मंदिर की प्रशंसा में यहां बाद मुझे सुनाई तो मैंने उन्हें बताया कि वह हनुमान मंदिर नहीं बाबा का मंदिर है। उसमें बाबा पादासन में विराजमान है वेद जी को मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ इससे अमर सिंह जी की शंका का पूरी तरह निर्माण समाधान हुआ।

वास्तव में हनुमान अमर है बाबा नीम करोली के रूप में दर्शन देकर उन्होंने अनेकों को कृतार्थ किया।