उत्तराखंड–भिटौली बेटी की मायके में दी हुई दीर्घायु व सम्पन्नता के लिये आशीर्वाद
उत्तराखंड/कुमाऊं–चैत का महिना, बेटियों को अपने घर व विवाहिताओं को अपने मायके की याद दिलाने लगता है। जहाँ पर उसका बचपन बीता जहाँ उसके माता पिता हैं। भाई-बहिनें, चाचा-ताऊ आदि का परिवार है। जिनका प्यार व आशिर्वाद बचपन से मिलता आया है।
कुमाऊँ के हर घर की बेटी को प्रतिक्षा रहती है कि भिटौली का महिना आयेगा भाई का बुलावा आयेगा भाई के घर बहिन देहरी पूजती है, उसकी दीर्घायु की कामना करती है। चैत का पूरा महिना भिटौली का कहलाता है।
इस महिने में कभी भी भाई शुभ मुहुर्त में बहन को मायके में लेकर आता है व उसको सम्मान पूर्वक भैय्या भाभी आसन में बैठाते है। बहनों को रोली अक्षत लगाकर व भोजन पकवान खिलाकर दक्षिणा स्वरुप सामर्थ अनुसार वस्त्र आदि देकर बहिन को ससम्मान बिदा करता हैं। बहिन भी भाई को रोली अक्षत लगाकर सम्मानित करती है। उस की दीर्घायु होने की कामना करती है। मायके में रिध्धी सिध्धी बनी रहे। ऐसी कामना कर निम्न प्रकार से आशीर्वाद देती है।
जी रये जाग रये यो दिन यो मास. नित नित भेंटणें रये यो दिन यो मास.
अर्थात मेरे भाई लाख चैत तक चिरन्जीवी रहकर इस दिन और इस मास मुझसे मिलते रहना.खूब पढ़ना लिखना बड़ा आदमी बनना और मेरे भाई चिरन्जीवी रहना इस महिने नित्य मिलते रहना यही मेरी लाख बर्ष की कामना है।
कुुमाऊँ की बेटियां बचपन से ही घर की देहरी को आज तक पूजती आ रहींं है। यह महत्वपूर्ण पर्व छोटी छोटी बालिकाओं के चेहरे पर अनोखी मुस्कुराहट लेते हुऐ आता है। इनकी अपनी थाली में चावल गुड़, फूल, द्रव्य पैसे, आदि से परिपूर्ण हो कर घर से निकलती हैं। अपनी घर की देहरी को पूजकर, सखियों के साथ और घरो की भी देहरी पूजती है व फूल अक्षत डाल कर उनके ऐश्वर्य की कामना करतीं है। इस उपलक्ष में घर परिवार के लोग थाली में यथाशक्ति चावल गुड़ द्रव्य डालकर सम्मान पूर्वक कन्याओं को विदा करते हैं।
इस पर एक़ बड़ी मार्मिक कथा है जो पूूरी कथा लिखनी अभी सम्भव नही है पर इस प्रकार से थोड़ी सारांश से बताता हूं।
एक समय था जब आधुनिक संसाधन नहीं थे. सड़कें नहीं थी। वाहन नहीं थे व बेटी भी दूर व्याही होती थी। पाँच से छह दिन का समय लग जाता था। पैदल मार्ग कितने जँगली जानवर गधेरे आदि पार करना। कई तरह की मुसीबतो का सामना करते हुऐ एक भाई शुक्र की रात बहिन के घर पहुचता है। बहिन थकी मादी सो रही होती है। मन ही मन चैत को भेटणा दीदी। चैत को भेटणा कहता है व उचित नहीं समझता है उसे उठाना सुबह का इन्तजार करता है। चार बजे उसकी झपकी हुई आँख खुलती है। उसे याद आता है कि माँ ने कहा था कि शनिवार पडे़गा तो उस दिन भिटौली मत देना। उसने कभी दीदी की ओर देखा। कभी भेटणें की टोकरी को फिर दीदी को देखा जो अभी भी गहरी नींंद में सोई थी। भाई दीदी के उठने से पहले ही आँसू भरकर चला गया।
बहिन ने सपना देखा कि भाई आया भिटौली लेकर और पैर छुवें। सपना टूटा और देखा कि सचमुच भैटणें की रँग बिरँगी टोकरी रखी है। समझ गई भाई आया था। दूर दूर तक चिल्लाती हुई भाई को देखने निकल पड़ी पर भाई का कहीं पता नहीं चला. बड़े दुख: के साथ कहने लगी. हाय मेरा भाई आया. मेरा एकलौता भाई आया. मेरा प्यारा भाई आया. मैं सोती रही. मैं मिल भी नही पाई. इतनी दूर से मेरा भाई आया. हाय वह भूखा प्यासा चला गया. भिटौली लेकर आया. भिटौली की भेट भी पूरी नही हुई वह चला गया. दिन रात सोचती सोचती बहन का कपास सा मन जेठ के घाम में धूप में हिसालू एक फल की तरह सूख गया. भाई और भिटौली की भेंट का दुख: बहन सम्भाल नहीं.सकी. बहन भिटौली की टोकरी देखती रहती और आँसू बहाती रहती।
इस दुख को वह नही सम्भाल पाई व उसके प्राण निकल गऐ। कहावत है अभी भी पहाड़ जायें तो सुने। चैत के महिने में एक चिड़िया की आवाज गूँजती है।
भै भूखौ मैं सोती भै भूखौ मैंं सोती यह घुघुती
चिड़िया आज भी भाई बहिन की भिटौली की एक यादगार है व जो पीड़ा बहन जीवित रहते न सहन कर सकी आज घुघुती चिड़िया बन करकूकती रहती है। यह त्योहार कुमाऊँ क्षेत्र में काफी महत्व पूर्ण है। आज भी इस त्योहार में लड़कियों को उनके मायके सम्मानपूर्वक भाई बुलाता है व खुशी खुशी बिदा करता है। जो बहन दूर है। आने में असमर्थ है। उसे वही भिटौली पहुँचाता है।