मकर संक्रांति के पर्व पर पूर्व आईपीएस ध्रुव गुप्त द्वारा लिखित शानदार लेख, पढ़िए, “ऋतु-परिवर्तन का उत्सव”
मकर संक्रांति का दिन सूर्य की दक्षिण से उत्तर दिशा में अर्थात दक्षिणायन से उत्तरायण गति के प्रारम्भ का दिन है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा की गति के आधार पर महीनों को दो भागो में बांटा गया है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इस तरह सूर्य की गति के आधार पर वर्ष को दो भागो में बांटा गया हैं-उत्तरायण और दक्षिणायन। उत्तरायण में पृथ्वी को प्रकाशमय माना जाता है और दक्षिणायन में अंधकारमय।
उत्तरायण में रातें छोटी, दिन बड़े, प्रकाश प्रखर, मौसम गर्म और दक्षिणायन में रातें बड़ी, दिन छोटे, प्रकाश कम और मौसम सर्द होता है। उत्तरायण को हमारे शास्त्रों में देवताओं का दिन यानी शुभ और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात अशुभ माना गया है।
कहा गया है कि उत्तरायण के छह प्रकाशमय महीनों में शरीर का त्याग करने से व्यक्ति पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसके विपरीत दक्षिणायन के छह अंधकारमय महीनों में शरीर छोड़ने पर उसे पुन: पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है। इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही शरीर का परित्याग करना पसंद किया था।
कर्मकांडियों के अनुसार आज के दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान-पुण्य करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। हमारे जैसे लोगों को जिन्हें न ज्योतिष की ज्यादा समझ है, न कर्मकांड में विश्वास और न इस सुंदर पृथ्वी पर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति की कोई महत्वाकांक्षा, जीवनदायी सूर्य की हर गति, हर अंदाज प्यारा है।
हमारी पृथ्वी पर जो भी जीवन है, सौंदर्य है, रंग है- वह सूर्य के कारण ही है। सूर्य की स्थिति में बदलाव के कारण होने वाला हर ऋतु परिवर्तन जीवन की आवश्यकता है। उसमें शुभ-अशुभ जैसा कुछ नहीं। प्रकृति के हर रंग, हर रूप को उत्सव में बदल देना हमारी भारतीय संस्कृति का सौंदर्य और पहचान है।
आज का ऋतु परिवर्तन बसंत की आहट सुनने का दिन है। इसके लिए सुबह-सुबह सूर्य का आभार प्रकट करिए और टूट पड़िए दही- चूड़ा-गुड़, तिलकुट और खिचड़ी पर। जहां तक संभव हो कुछ जरूरतमंदों को भी ख़िलाइये। दिन में घर से बाहर निकलिए और रंग-बिरंगे पतंगों के साथ आकाश नाप डालिये।