पढ़िए, वरिष्ठ आईपीएस द्वारा लिखित भोजपुरी साहित्य के शिखर, स्व भिखारी ठाकुर की यह कथा…

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सबसे कठिन जाति अपमाना/लोकभाषा भोजपुरी की साहित्य-संपदा की जब चर्चा होती है तो सबसे पहले जो नाम सामने आता है, वह हैं स्व भिखारी ठाकुर का। वे भोजपुरी साहित्य के ऐसे शिखर हैं जिसे न उनके पहले किसी ने छुआ था और न उनके बाद कोई उसके निकट भी पहुंच सका।

भोजपुरिया जनता की जमीन, भोजपुरी की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं,उसकी आशा-आकांक्षा तथा राग-विराग की जैसी समझ भिखारी ठाकुर को थी, वैसी किसी अन्य भोजपुरी कवि-लेखक में दुर्लभ है। वे भोजपुरी माटी और अस्मिता के प्रतीक थे।

लगभग अनपढ़ होने के बावजूद बहुआयामी प्रतिभा के धनी भिखारी ठाकुर एक साथ कवि, गीतकार, नाटककार, निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। अपनी मिट्टी से गहरे जुड़े इस ठेठ गंवई कलाकार ने भोजपुरी की प्रचलित नाटक, नृत्य, गायन और अभिनय की शैलियों में जो अभिनव प्रयोग किए थे, वे दूरगामी सिद्ध हुए।

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उनकी नई नाट्य-शैली को बिदेसिया कहा गया। आज भी बिदेसिया भोजपुरी की सबसे ज्यादा लोकप्रिय नाट्य-शैली है। सामाजिक समस्याओं और विकृतियों को टटोलने और उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले भिखारी ठाकुर के नाटकोंमें सीधी -सादी लोकभाषा में गांव-गंवई की सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं होती थीं जिनसे लोग सरलता से जुड़ जाया करते थे। वे खुद एक सुरीले गायक थे, इसीलिए लोक संगीत उन नाटकों की जान हुआ करता था। फूहड़ता का नामोनिशान नहीं।

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उस दौर के प्रचलित नाटकों से अलग कथ्य और शैली में लिखे अपने नाटकों को वे खुद नाटक नहीं, नाच या तमासा कहते थे। उनके तमाशों या नाच के पात्र समाज के श्रमिक, किसान और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे आम लोग होते थे। उन्हें भोजपुरी में स्त्री विमर्श और दलित विमर्श का जन्मदाता माना जाता है।

एक समतावादी समाज का सपना उनकी कृतियों का मूल स्वर है। उनकी हर रचना में जाति-पाति और भेदभाव से ऊपर उठकर एक मानवीय समाज की परिकल्पना मौजूद है। जीवन में कदम-कदम पर जातिगत भेदभाव और अपमान की पीड़ा झेलने वाले भिखारी ठाकुर में इस भेदभाव के खिलाफ मात्र असंतोष नहीं, एक गहरा प्रतिरोध भी दिखता है।

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उनका यह प्रतिरोध उनके नाटक ‘नाई बहार’ में ज्यादा मुखर हुआ है जिसमें उन्होंने कहा है–सबसे कठिन जाति अपमाना। भिखारी ठाकुर की रचनाएं ऊपर से जितनी सरल दिखाई देती हैं, अपनी अंतर्वस्तु में वे उतनी ही जटिल और गहरी हैं।

उनकी रचनाओं के भीतर हर जगह एक आंतरिक करुणा और व्यथा पसरी हुई महसूस होती है। एक ऐसी करुणा और व्यथा जो तोड़ती नहीं, भविष्य का भरोसा देती है। आज जयंती पर भरत मुनि की परंपरा के नाटककार, भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले स्व. भिखारी ठाकुर को नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि।

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