नैनीताल–हाईकोर्ट ने पूछा बिना अनुमति वोट न डालने वाले पांच पंचायत सदस्यों पर क्या की कार्रवाई, डीएम एएसपी के लिए कही यह बात…

नैनीताल– उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनावों में कथित अनियमितताओं को लेकर चुनाव आयोग से कड़ा सवाल किया है।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने आयोग से पूछा कि उन पांच सदस्यों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिन्होंने बिना किसी अनुमति के मतदान में हिस्सा नहीं लिया। अगली सुनवाई अब 1 सितम्बर को होगी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी जानना चाहा कि मतदान के दिन हुई घटनाओं पर एफ.आई.आर. दर्ज क्यों नहीं हुई, जबकि अपहरण जैसे गंभीर आरोप सामने आए थे। अदालत ने साफ कहा कि अब तक यह नहीं पूछा गया कि किसने किसको वोट दिया, बल्कि यह पूछा जा रहा है कि कहीं किसी को मतदान से रोका या बाध्य तो नहीं किया गया।
ऑब्जर्वर की रिपोर्ट पर उठे सवाल
चुनाव आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट ने अदालत को बताया कि ऑब्जर्वर की दो रिपोर्ट पेश की गई हैं, जिनमें कहा गया है कि 100 मीटर के दायरे में कोई गड़बड़ी नहीं हुई। लेकिन खंडपीठ ने सवाल उठाया कि 100 मीटर की सीमा किस नियम के तहत तय की गई, जबकि नियम तो 500 मीटर के दायरे में भी भीड़ न होने की बात करते हैं।
डीएम और एसएसपी की भूमिका पर भी सवाल
मुख्य न्यायाधीश ने तीखे लहजे में पूछा, “डीएम पंचतंत्र की कहानी भेज रही थीं क्या? ” साथ ही यह भी कहा कि एसएसपी पूरी तरह फेल हुए हैं। कोर्ट ने यह जानना चाहा कि इन अधिकारियों की कार्यशैली को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं।
डीएम वंदना सिंह वर्चुअल रूप से सुनवाई में शामिल रहीं। बताया गया कि उन्होंने पुष्पा नेगी की शिकायत पर एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट चुनाव आयोग को भेजी थी। लेकिन अदालत इस बात से संतुष्ट नहीं हुई कि संवेदनशील मुद्दे पर आयोग ने अब तक कोई निर्णायक कार्यवाही क्यों नहीं की।
न्यायालय ने क्या निर्देश दिए?
चुनाव आयोग को सोमवार तक शपथपत्र के रूप में अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा गया है। अदालत ने पूछा कि पांच गायब सदस्यों को नोटिस क्यों नहीं भेजे गए और उनकी अनुपस्थिति को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया। यह भी कहा गया कि ए.आर.ओ. ने रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि उन्हें केवल पुनर्गणना का अधिकार है, पुनर्मतदान का नहीं।
याची की मांग
वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र पाटनी ने न्यायालय से मांग की कि इस चुनाव को रद्द कर पुनः मतदान कराया जाए, क्योंकि कई एफआईआर अपहरण जैसे आरोपों को लेकर दर्ज की गई थीं और नियमों का उल्लंघन हुआ है।
अब सबकी निगाहें सोमवार 1 सितम्बर को चुनाव आयोग द्वारा दाखिल किए जाने वाले शपथपत्र पर हैं, जिसमें उसे अपनी भूमिका और कार्रवाई को स्पष्ट करना है। न्यायालय ने साफ संकेत दे दिए हैं कि वह इस पूरे मामले में गंभीरता से संज्ञान लेकर पारदर्शिता और नियमों की पालना सुनिश्चित करेगा।


