बिग ब्रेकिंग–लालकुआं में जनप्रतिनिधियों की लम्बी कतार, कई वर्षों से आज भी अधूरी योजनाओं में उलझा विकास का सपना…

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लालकुआं (नैनीताल)। कभी शांत, हरियाली से घिरा और सुकूनभरा कहा जाने वाला लालकुआं शहर आज अव्यवस्था, ट्रैफिक जाम और अधूरे वादों के जाल में बुरी तरह फंस गया है। शहर की पहचान अब ट्रकों की कतारें, जाम में फंसे वाहन और धूल से भरी सड़कों से होने लगी है। विकास की तमाम योजनाएं अब फाइलों में सिमटकर रह गई हैं, जबकि जनता रोजमर्रा की परेशानियों से जूझने को मजबूर है।

 

 

🚧 जाम और अव्यवस्था से कराहता शहर

 

करीब 107 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला और एक लाख से अधिक आबादी वाला लालकुआं अब अपनी तंग सड़कों पर ट्रैफिक का बढ़ता बोझ झेल नहीं पा रहा।

 

 

शहर के बीचोंबीच से गुजरने वाला स्टेट हाईवे हर दिन घंटों तक जाम का शिकार रहता है। दुकानों का फुटपाथों पर कब्जा, ठेले, और अवैध पार्किंग ने हालात और बिगाड़ दिए हैं।

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रैलियों, धार्मिक आयोजनों और विरोध प्रदर्शनों के दौरान तो हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि शहर की रफ्तार पूरी तरह थम जाती है। लोगों को ऑफिस, स्कूल और अस्पताल पहुंचने में घंटों लग जाते हैं।

 

 

 

 

🚦 रेलवे फाटक बना जनता की रोजमर्रा की मुसीबत

 

कुमाऊं का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन होने के बावजूद लालकुआं जंक्शन के आसपास की व्यवस्थाएं बेहद लचर हैं।

 

 

 

रेलवे फाटक का बार-बार बंद रहना बिंदुखत्ता और लालकुआं के बीच आने-जाने वाले हजारों लोगों के लिए रोज का सिरदर्द बन चुका है।

 

 

फ्लाईओवर की योजना वर्षों से फाइलों में दबी है। कागजों पर तो कई बार स्वीकृति और निरीक्षण की बातें हुईं, लेकिन जमीन पर अब तक एक ईंट भी नहीं रखी गई।

 

 

 

🚌 बस अड्डे की कमी और अव्यवस्थित यातायात

 

लालकुआं में आज तक स्थायी बस अड्डा नहीं बन सका। सरकारी और निजी वाहन बिना तय स्टॉप के चलते हैं, जिससे यात्रियों को कई बार किलोमीटरों तक पैदल चलना पड़ता है।

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नगर पंचायत ने सुधार के कुछ प्रयास जरूर किए, लेकिन राजनीतिक खींचतान और विरोधों के बीच योजनाएं अधर में लटक गईं।

 

 

 

🌆 बढ़ती आबादी, घटती सांसें

 

2011 की जनगणना के अनुसार जहां नगर क्षेत्र की आबादी महज 7,644 थी, वहीं अब यह आंकड़ा कई गुना बढ़ चुका है।

 

 

 

तेजी से बढ़ती जनसंख्या और अव्यवस्थित विकास ने शहर का संतुलन बिगाड़ दिया है।

 

 

 

बिंदुखत्ता की लगभग एक लाख की आबादी रोजाना लालकुआं होकर गुजरती है, जिससे ट्रैफिक का दबाव और बढ़ जाता है।

 

 

 

अब हाल यह है कि दिनभर सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतारें और हॉर्न का शोर आम दृश्य बन चुके हैं।

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⚖️ जनता के सब्र का बांध टूटने की कगार पर

 

जनता अब सवाल पूछ रही है।

 

> “क्या कोई सरकार या जनप्रतिनिधि इस शहर की समस्याओं को वाकई गंभीरता से सुनेगा? या फिर लालकुआं सिर्फ चुनावी वादों का पोस्टर बनकर रह जाएगा?” चुनाव आते हैं, घोषणाएं होती हैं, योजनाओं का शिलान्यास होता है लेकिन विकास वहीं का वहीं रुक जाता है।

 

 

 

🌄 अब बदलाव की दरकार

 

लालकुआं की तस्वीर बदलने की जरूरत अब पहले से कहीं ज्यादा महसूस हो रही है। लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई तो नेता या जनप्रतिनिधि ऐसा होगा जो इस शहर की सांसें बहाल कर सके।

 

 

 

फिलहाल लालकुआं धूल, जाम और वादों के बीच धीरे-धीरे घुटता जा रहा है जनता बस एक सवाल दोहरा रही है “कब मिलेगी राहत?”

 

 

 

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